जयपाल जुलियस हन्ना साहित्य अवार्ड 2023 से पुरस्कृत आदिवासी साहित्यकार

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डॉ. पूजा प्रभा एक्का

Description 10 मार्च 1989 को अलिपुरद्वार (प.बं.) जिले के पनियालगुरी चाय बागान में मां बेरथा एक्का और बाबा रिचर्ड पॉल एक्का के घर में जन्म। पढ़ाई-लिखाई हिंदी भाषा-साहित्य में पीएच.डी. तक। साथ में डिप्लोमा इन ट्रांसलेशन और डिप्लोमा इन हिंदी जर्नलिज्म भी किया। जेआरएफ जेआरएफ अवार्डी रही पूजा ने पहले स्कूल में शिक्षिका के रूप में

पढ़ाया और अगस्त 2019 से सिलिगुड़ी, पश्चिम बंगाल के घोषपुकुर कॉलेज में हिंदी की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। रचनाएं अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। ‘सोमरा का दिसुम’ इनका पहला अनुवाद कार्य है। जयपाल जुलियस हन्ना अवार्ड से सम्मानित कथा संग्रह ‘सोमरा का दिसुम’ प्रख्यात आदिवासी लेखिका काजल डेमटा की ‘चा-बगिचार सांझ फजिर’ 2015 का हिंदी अनुवाद है। वास्तव में काजल डेमटा आदिवासी साहित्य में ही नहीं, बल्कि विभिन्न भाषाओं वाले भारतीय साहित्य में अपने किस्म की एकमात्र अनूठी अभिव्यक्ति हैं। जो एक ओर प्रागैतिहासिक इतिहास के उन पुरखों के जीवन-विश्वास से जुड़ती है, जिन्हें आदिम-जंगली माना जाता है, तो वहीं उस समकालीन आदिवासी दृष्टि-धार-विचार से भी लैस हैं जो हाल-फिलहाल के ब्रिटिश और गैर-ब्रिटिश सत्ता के दोनों भागों में समान रूप से पीड़ित और युद्धरत दिखाई देती है। इस माने में ‘सोमरा का देस’ न केवल चाय बागानों का ही नहीं बल्कि हर रोज युद्धरत आदिवासी दुनिया का सबसे प्रामाणिक बयान है।

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डॉ. तुनुङ ताबिङ

Description डॉ. तुनुङ ताबिङ उत्तर-पूर्व भारत के अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी सियाङ ज़िले की रहने वाली हैं। उनका जन्म फरवरी 1991 में माँ ओरी ताबिङ और पिता ताकेप ताबिङ के घर हुआ। आदी समुदाय की उपजनजाति 'ताङाम' से आने वाली डॉ. ताबिङ ने अपनी मातृभाषा, समाज और संस्कृति को न केवल गहराई से जिया है, बल्कि उस पर गंभीर शोध भी किया है। उन्होंने ‘अरुणाचल प्रदेश के आदी जनजाति की उपजनजाति

ताङाम का समाजभाषिक अध्ययन’ विषय पर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। वर्तमान में वे ईटानगर स्थित राजीव गांधी विश्वविद्यालय के इंस्टीच्यूट ऑफ डिस्टेंट एजुकेशन में प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं। उनकी पहली पुस्तक ‘गोमpí गोमुk’ एक द्विभाषी कविता-संग्रह है, जिसमें आदी और हिंदी—दोनों भाषाओं में कविताएँ प्रस्तुत की गई हैं। रोमन और देवनागरी—दोनों लिपियों में यह संकलन आदिवासी भाषा और अभिव्यक्ति के सौंदर्य को नई पहचान देता है। यह संग्रह न केवल भाषाई नवाचार का उदाहरण है, बल्कि इसमें आदिवासी समाज की स्मृति, पुरखा ज्ञान, जीवन-दृष्टि, पर्यावरण चेतना और सांस्कृतिक गहराइयाँ भी अत्यंत संवेदनशीलता से अभिव्यक्त हुई हैं। ‘गोमpí गोमुk’ की कविताएँ आदी भाषा के ध्वनि-संगीत, लयात्मकता और रूपकों को आधार बनाकर आदिवासी चेतना की एक जीवंत तस्वीर प्रस्तुत करती हैं। ये कविताएँ उस पुरातन सीख को दोहराती हैं जिसे आदी समाज ने पीढ़ियों से आत्मसात किया है—प्रकृति के साथ सहजीविता, स्त्री की गरिमा, समुदाय की आत्मनिर्भरता, और संघर्षों की गरिमा। संग्रह में प्रयुक्त शैली में आधुनिक कविता की संवेदना और आदिवासी मौखिक परंपरा का सुन्दर संगम देखा जा सकता है।

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संतोष पावरा

Description युवा कवि संतोष पावरा का जन्म 7 जुलाई 1989 को महाराष्ट्र के नंदूरबार ज़िले के छोटे से गाँव लक्कड़कोट में हुआ। उनकी माता इमलीबाई और पिता पीचा किसान परिवार से थे। संतोष पावरा पावरा आदिवासी समुदाय से आते हैं, जिनकी सांस्कृतिक विरासत और

संघर्षशील चेतना उनकी कविता की आत्मा बन जाती है। सामाजिक कार्य (MSW) में शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी उन्होंने शब्दों की खेती नहीं छोड़ी। वे कलावंत हैं—एक कलाकार, जो बाँसुरी की मीठी तान भी छेड़ते हैं और गीतों की जनधुन भी रचते हैं। कवि होने के साथ-साथ वह गायक, लेखक, कहानीकार और सक्रिय जनआंदोलनकारी भी हैं। मराठी और हिंदी की अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें उनकी 2017 में प्रकाशित कविता संग्रह 'हेम्टू' (अतिक्रमण) विशेष रूप से उल्लेखनीय है। 'हेम्टू' केवल एक कविता संग्रह नहीं, बल्कि यह आदिवासी जीवन, संस्कृति, भाषा और संघर्षों की गर्जना है। इसमें धड़कता है वह हृदय, जो अपने समाज के सुख-दुख, विस्थापन, जल-जंगल-ज़मीन के संघर्ष और सांस्कृतिक अस्मिता के सवालों से गहराई से जुड़ा हुआ है। उनकी कविताएँ पावरा/बरेला मातृभाषा के प्रति उनके प्रेम और संरक्षण के संकल्प को भी स्वर देती हैं।

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इन तीनों लेखकों की रचनाएँ भारतीय आदिवासी जीवन, संघर्ष, और उनकी सांस्कृतिक धरोहर को प्रकाश में लाती हैं। इनकी कृतियाँ न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि आदिवासी समाज के अस्मिता और उनके संघर्षों को भी सही तरीके से प्रस्तुत करती हैं।

हम हैं – धरती के संरक्षक, स्थिरता के रचनाकार.

आदिवासी साहित्यिक जगत में बीस से अधिक वर्षों का अनुभव