जयपाल जुलियस हन्ना साहित्य अवार्ड 2022 से पुरस्कृत आदिवासी साहित्यकार
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उज्जवला ज्योति तिग्गा
उरांव आदिवासी समुदाय की प्रतिष्ठित लेखिका, उज्जवला ज्योति तिग्गा का निधन 18 अप्रैल 2023 को हुआ था। उनके द्वारा लिखी गई पांडुलिपि ‘धरती के अनाम योद्धा’ (कविता संग्रह) को मरणोपरांत पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है।
उज्जवला ज्योति तिग्गा का जन्म 17 फरवरी 1960 को दिल्ली में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने केंद्रीय विद्यालय दिल्ली से प्राप्त की, जहाँ से उन्होंने 1976 में अपनी पढ़ाई पूरी की। इसके बाद, 1979 में उन्होंने जीसस एंड मेरी कॉलेज, चाणक्यपुरी दिल्ली से राजनीतिशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और 1981 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली से राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर की शिक्षा ली। 1983 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, दिल्ली में अनुभाग अधिकारी के रूप में उनकी नियुक्ति हुई थी। लेखन की दिशा में उनका रुझान बचपन से ही था, और उन्होंने हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में रचनाएँ की। उनकी कविताओं में आदिवासी जीवन, संघर्ष, और मानवता के विभिन्न पहलुओं की गहरी समझ देखने को मिलती है।
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रेमोन लोंग्कु
रेमोन लोंग्कु (Remon Longku), जिनका जन्म 1 जून 1996 को हुआ है, तांगसा आदिवासी समुदाय से हैं और अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग
जिले के निवासी हैं। वह अपनी मातृभाषा 'तांगसा' और हिंदी दोनों भाषाओं में लेखन करते हैं। रेमोन ने राजीव गांधी विश्वविद्यालय, ईटानगर से हिंदी में एमए और एमफिल की डिग्री प्राप्त की है। वर्तमान में वह पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग (मेघालय) में पीएचडी कर रहे हैं। उनकी कृति ‘कोंग्कोंग-फांग्फांगः अरुणाचल के हेडहंटर्स की कहानियां’ हिंदी में लिखित उनका पहला कहानी संग्रह है, जिसे पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है। इस संग्रह में अरुणाचल प्रदेश के अद्भुत और ऐतिहासिक पहलुओं को उजागर किया गया है, जो न केवल स्थानीय आदिवासी जीवन को दर्शाते हैं, बल्कि समग्र भारतीय संस्कृति की विविधता को भी प्रस्तुत करते हैं।
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सुनील गायकवाड़
सुनील गायकवाड़, जो एक शिक्षक हैं, का जन्म 1 जून 1977 को महाराष्ट्र के जलगांव जिले में हुआ है । वह भील आदिवासी समुदाय से आते हैं और अपनी मातृभाषा 'भीली' और मराठी में लेखन करते हैं।
सुनील ने मराठी साहित्य में एमए किया है और उनकी कई पुस्तकें दोनों भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी कृति ‘डकैत देवसिंग भील के बच्चे’ एक आत्मकथात्मक उपन्यास है, जो हिंदी में लिखित और प्रकाशित होने वाली उनकी पहली रचना है। इस उपन्यास में भील समाज के संघर्ष, उनके जीवन की कठिनाइयाँ, और समाज में उनके स्थान की गहरी परतों को उजागर किया गया है। इस कृति को जयपाल-जुलियुस-हन्ना पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है, जो उनके लेखन की उत्कृष्टता को प्रमाणित करता है।
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इन तीनों लेखकों की रचनाएँ भारतीय आदिवासी जीवन, संघर्ष, और उनकी सांस्कृतिक धरोहर को प्रकाश में लाती हैं। इनकी कृतियाँ न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि आदिवासी समाज के अस्मिता और उनके संघर्षों को भी सही तरीके से प्रस्तुत करती हैं।
हम हैं – धरती के संरक्षक, स्थिरता के रचनाकार.
आदिवासी साहित्यिक जगत में बीस से अधिक वर्षों का अनुभव