तेलंगा खड़िया भाषा एवं संस्कृति केन्द्र प्यारा केरकेट्टा फाउन्डेशन की इकाई है जो झारखंड की देशज एवं आदिवासी भाषाओं, पुरखा साहित्य, इतिहास और संस्कृति के संरक्षण, पुनर्लेखन, पुनर्प्रकाशन, डिजिटल संरक्षण और प्रकाशन के कार्यों में संलग्न है। झारखंडी भाषाओं के संरक्षण व संवर्द्धन और विकास के लिये हमारा यह केन्द्र पिछले 15 सालों से प्रयासरत है। क्योंकि सांस्कृतिक विरासत की रक्षा और सामाजिक पुनर्गठन का सवाल झारखंड के देशज एवं आदिवासी लोगों की मूल चिन्ता है। ग्रेटर झारखंड की लगभग 2 करोड़ देशज एवं आदिवासी आबादी 15 से अधिक भाषाओं का इस्तेमाल करती है। इसीलिए फाउन्डेशन ने भाषा और संस्कृति के सवाल को गंभीरता से लिया है।
तेलंगा खड़िया भाषा एवं संस्कृति केन्द्र का मुख्य काम समुदाय की पुरानी पीढ़ी से ज्ञान परंपरा को सीखना और संरक्षित करना है। समुदाय के बूढ़े-बड़े सदस्यों के पास ज्ञान की एक बहुत ही समृद्ध वाचिक परंपरा है जो आलेखन और संरक्षण के अभाव में विलुप्त होने की ओर अग्रसर है। नई पीढ़ी बाहरी संस्कृति के आरोपण एवं हमलों का शिकार है। लिहाजा पुरानी ज्ञान परंपरा को बचाना और संचार के नए-नए रूपों के द्वारा उन्हें नई पीढ़ी तक हंस्तारित करना एक महत्वपूर्ण कार्यभार है। तेलंगा खड़िया भाषा एवं संस्कृति केन्द्र इसी महत्वपूर्ण कार्य को अपने सीमित संसाधनों के जरिए पूरा करने में लगी हुई है।
हम सीखते हैं अपने बड़े-बूढ़ों से क्योंकि उनके पास ही है हमारे पुरखों की धरोहर।
समुदाय से सीखा हुआ ज्ञान हम बांटते हैं नई पीढ़ी से क्योंकि वही हमारा भविष्य हैं।
हम समुदाय के ज्ञान को लिखित रूप दे रहे हैं और उन्हें डिजिटली संरक्षित कर रहे हैं।
समुदाय के ज्ञान को हम फिर से प्रस्तुत कर रहे हैं। जो नया जानते हैं वह भी और पुराना भी।
झारखंड के देशज और आदिवासी समुदायों के सहयोग से फाउंडेशन ने अब तक 3000 से ज्यादा लोक गीतों और कहानियों को लिपिबद्ध किया है।
अब तक 2000 से ज्यादा पुरानी पत्रिकाओं, दस्तावेजों, पम्फलेटों, पुस्तकों और छायाचित्रों को हमने डिजिटाइज्ड किया है।
झारखंड के 12 देशज और आदिवासी तथा हिंदी एवं अंग्रेजी भाषाओं में 150 से ज्यादा पुस्तकों और 50 से अधिक विडियो चलचित्रों एवं रिपोर्टों का प्रकाशन किया है।