Pyara Kerketta Foundation

हमारे अगुआ

जो हमारे पथ प्रदर्शक हैं और जिन पर हमें गर्व है.

Joel Lakra

जोएल लकड़ा

जोएल लकड़ा 20वीं सदी के पहले बौद्धिक आदिवासी नेता हैं जिन्होंने 1920-30 के दशक में आदिवासी अधिकारों के सवाल को सामाजिक और राजनीतिक तौर पर उठाया। इन्होंने 1920 में गठित छोटानागपुर उन्नति समाज को पुनर्गठित करते हुए उसे एक आंदोलन का स्वरूप प्रदान किया। साइमन कमीशन के सामने इन्होंने बहुत ही प्रखरता के साथ आदिवासी स्वायत्तता की मांग रखी थी। इनकी ही बौद्धिकता, राजनीतिक जागरूकता और संगठनात्मक पहल ने आगे चलकर आदिवासी महासभा का रूप लिया।

Sushila Samad

सुशीला सामद

सुशीला सामद या सुशीला सामंत (7 जून 1906-10 दिसंबर 1960) हिंदी की पहली भारतीय आदिवासी कवयित्री, पत्रकार, संपादक और स्वतंत्रता आंदोलनकारी हैं। 1931 में इन्होंने प्रयाग-महिला-विद्यापीठ से प्रवेशिका, 1932 में वहीं से सफलतापूर्वक विनोदिनी और 1934 में विदुषी (बी.ए. ऑनर्स) की शिक्षा पूरी की। हिंदी माध्यम से ‘हिंदी विदूषी’ होने का गौरव हासिल करने वाली वह भारत की प्रथम आदिवासी महिला भी हैं। सुशीला सामद मात्र एक कवयित्री ही नहीं हैं, बल्कि 1925-30 के दौर में वे एक साहित्यिक-सामाजिक पत्रिका ‘चाँदनी’ का संपादन-प्रकाशन भी करती थीं और तत्कालीन बिहार में गांधी की एकमात्र आदिवासी महिला ‘सुराजी’ आंदोलनकर्ता भी थीं।

Anjelina Tigga

एंजेलीना तिग्गा

एंजेलीना तिग्गा (जन्मः 3 अगस्त 1909) पत्थलकुदवा, रांची की रहने वाली थीं। उरांव आदिवासी समुदाय की एंजेलीना एक कुशल आदिवासी संगठक, एक प्रखर वक्ता और प्रभावशाली महिला नेता थीं। आदिवासी महिलाओं को राजनीतिक रूप से जागरूक करते हुए उन्हें आदिवासी महासभा के साथ जोड़ने में इनकी प्रमुख भूमिका रही थी। 1950-60 के दशक में इन्होंने अनेक मुद्दों पर जन आंदोलनों को नेतृत्व प्रदान किया था। इनके खिलाफ तत्कालीन बिहार सरकार ने लोगों को भड़काने, आंदोलन करने आदि के कई मुकदमें दर्ज किए थे। 

Jaipal Singh Munda

जयपाल सिंह मुंडा

जयपाल सिंह मुंडा (3 जनवरी 1903 - 20 मार्च 1970) भारतीय आदिवासियों और झारखंड आंदोलन के एक सर्वाेच्च नेता थे। वे एक जाने माने राजनीतिज्ञ, पत्रकार, लेखक, संपादक, शिक्षाविद् और 1925 में ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ का खिताब पाने वाले हॉकी के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे। उनकी कप्तानी में 1928 के ओलिंपिक हॉकी में भारत ने पहला स्वर्ण पदक प्राप्त किया। 1938 जनवरी में उन्होंने आदिवासी महासभा की अध्यक्षता ग्रहण की जिसने अलग झारखंड राज्य की स्थापना की मांग की। उन्होंने न सिर्फ स्वतंत्र होते भारत में आदिवासियों को जागरूक और संगठित किया बल्कि इसी के साथ वे भारतीय राजनीति और समाज में ‘आदिवासियत’ के पहले और प्रबल प्रस्तावक और पैरोकार थे।

Julias Tigga

जुलियस तिग्गा

जुलियस तिग्गा (13 अक्तूबर 1903-1971) एक सुप्रसिद्ध आदिवासी शिक्षाविद्, लेखक-संपादक, कलाकार, संस्कृतिकर्मी, कुशल राजनीतिज्ञ और संगठनकर्ता थे। वे भारत के आदिवासी आंदोलन की पहली पीढ़ी के नेता हैं जिन्होंने आदिवासियत की राजनीति को भारत में स्थापित करने में बौद्धिक भूमिका निभायी। 1939-1948 तक वे आदिवासी महासभा के महासचिव रहे थे और आदिवासी पत्रिका का संपादन किया था। आदिवासी पत्रकारिता के लिए उन्हें जेल भी भुगतना पड़ा था। उन्होंने आदिवासी शिक्षा की बुनियाद डालते हुए रांची स्थित कांके में एक स्कूल ‘धुमकुड़िया’ भी खोला था जिसमें पारंपरिक तरीकों से बच्चों को शिक्षा दी जाती थी। 

Pyara Kerketta

प्यारा केरकेट्टा

खडिया आदिवासी समुदाय से आने वाले प्यारा केरकेट्टा (3 जून 1903-25 दिसंर 1973) ने भारतीय समाज और राजनीति में झारखंडी जनता की दावेदारी को बडी शिद्दत के साथ उठाया और उसे स्थापित किया। झारखंड की सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिये उन्होंने देशज भाषाओं को पुनर्सृजित और संगठित किया। मातृभाषा में देशज भाषाओं के अध्ययन अध्यापन के लिये पुस्तकें लिखीं और छपवाईं। खड़िया भाषा में आधुनिक शिष्ट साहित्य की शुरुआत की। झारखंड की देशज-आदिवासी जनता के स्वभिमान और गौरव को स्थापित करने के लिये युवाओं का नेतृत्व करते हुए सांस्कृतिक आंदोलन को संगठित किया। आजादी के पहले और बाद के भारत में झारखंड की उत्पीड़ित आबादी के समग्र उत्थान के लिये वे हमेशा संघर्षरत रहे।

Raghunath Murmu

रघुनाथ मुर्मू

रघुनाथ मुर्मू (5 मई 1905 - 1 फरवरी 1982) संताली भाषा-साहित्य और आदिवासी सांस्कृतिक आंदोलन के एक महान नेतृत्वकर्ता और दार्शनिक हैं। 1925 में उन्होंने ओल चिकी लिपि का आविष्कार किया। इतिहास, भाषा, व्याकरण, उपन्यास, नाटक, कविता आदि की उन्होंने उन्होंने 150 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। मयूरभंज आदिवासी महासभा ने उन्हें गुरु गोमके (महान शिक्षक) की उपाधि प्रदान की। गुरु गोमके ने भाषा के माध्यम से सांस्कृतिक एकता के लिए लिपि के द्वारा जो आंदोलन चलाया वह ऐतिहासिक है। उन्होंने कहा - अगर आप अपनी भाषा, संस्कृति, लिपि और धर्म भूल जायेंगे तो आपका अस्तित्व भी ख़त्म हो जाएगा।

Lako Bodra

लको बोदरा

ओत गुरु लको बोदरा (19 सितम्बर 1919 - 29 जून 1986) हो आदिवासी भाषा के साहित्यकार और सांस्कृतिक नेतृत्वकर्ता हैं। हो भाषा-साहित्य में लको बोदरा का वही स्थान है जो संताली समुदाय में रघुनाथ मुर्मू और खड़िया समुदाय में प्यारा केरकेट्टा का है। 1940 के दशक में इन्होंने हो भाषा के लिए वारंग चिति नामक लिपि की खोज की और इसके प्रचार-प्रसार के लिए ‘आदि संस्कृति एवं विज्ञान शोध संस्थान’ की स्थापना की। यह संस्थान आज भी हो भाषा-साहित्य के विकास में संलग्न है। हो’ भाषा और वारंग चिति लिपि में इन्होंने अपने आदिवासी समुदाय का इतिहास, नाटक, कहानियां और कविता पुस्तकों की रचना की है।

Alice Ekka

एलिस एक्का

एलिस एक्का (8 सितंबर 1917 - 5 जुलाई 1978) हिंदी कथा-साहित्य में भारत की पहली महिला आदिवासी कहानीकार हैं। हिंदी की पहली दलित कहानी लिखने का श्रेय भी एलिस एक्का को है। आपका जन्म रांची (झारखंड) में हुआ और 40 के दशक में अंग्रेजी साहित्य में स्नातक करने के बाद आपने लिखना शुरू किया। आपका पूरा नाम एलिस ख्रिस्तयानी पूर्ति है और आप आदिवासी विद्रोह के इतिहासप्रसिद्ध अगुआ बिरसा मुंडा के परिवार से संबंध रखती हैं। समकालीन अंग्रेजी-हिन्दी व झारखंडी भाषाओं के साहित्य और समसामयिक हलचलों से घिरे रहना, दिन-रात पढ़ना और लिखना आपकी दिनचर्या थी। कहानी लिखना और विश्व साहित्य का अनुवाद करना आपकी प्रकृति थी। खलील जिब्रान की अनेक रचनाओं का अनुवाद आपने किया है।


हम सब लड़ रहे हैं, अपने लिए नहीं, धरती की रक्षा के लिए.